मोदी सरकार ने नए जम्मू-कश्मीर की नींव अपने पहले कार्यकाल में रख दी थी. फिर 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद-370 हटाकर इसे और मजबूत किया. इससे पहले कश्मीर की फिजा में जहर घोलने वालों और उन्हें शह देने वाले अलगाववादियों पर एक-एक कर कई चोटें की गईं. ये वही अलगाववादी थे जो अपने बच्चों को विदेशों में पढ़ाते थे और आम कश्मीरी बच्चों के हाथ में पत्थर थमाते थे. आतंकवाद और अलगाववाद की दोहरी चुनौती से निपटने के लिए एक तरफ मोदी सरकार में सुरक्षाबलों ने ऑपरेशन ऑल आउट चलाकर बुरहान वानी, सद्दाम पाडर, आदिल खांडे, नासिर पंडित, अशफाक भट, सब्जार भट, वसीम मल्लाह, वसीम शाह, रियाज नायकू, जुनैद सहराई, फारूक अहमद शेख, गुलजार अहमद मंगू, ऐजाज अहमद भट, यूसुफ नज्जर, मोहम्मद खालिद, अबू फुरकान, वसीम, फारूक नाली जैसे बड़े आतंकियों का खात्मा किया. तो वहीं आतंकियों के हिमायती और पाकिस्तान परस्त अलगाववादियों पर नकेल कसकर कश्मीर को विकास की पटरी पर लाने की नींव डाली गई, जिस पर आज वंदे भारत दौड़नी शुरू हो गई है.
आतंकवाद के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के एक महीने बाद प्रधानमंत्री मोदी शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर पहुंचे. यहां उन्होंने दुनिया के सबसे ऊंचे रेल ब्रिज का उद्धाटन किया. इस ब्रिज की फौलादी नींव इस बात की तस्दीक करती है कि सीमा पार से की जाने वाली कोई साजिश जम्मू-कश्मीर के विकास को रोक नहीं सकती. इसके साथ ही मौजूदा दौर में जम्मू-कश्मीर की उमर अब्दुल्ला सरकार की केंद्र के साथ सियासी केमेस्ट्री भी बेहतरीन है. उमर जानते और मानते हैं कि केंद्र से टकराव रखकर जम्मू-कश्मीर का विकास संभव नहीं है.
क्षेत्रीय हित और केंद्र के साथ संतुलन
नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार के गठन के बाद से अब तक देखें तो उमर ने जम्मू-कश्मीर की खुशहाली को ही अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखा है. उमर और उनकी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने क्षेत्रीय हितों के साथ केंद्र के साथ संतुलन बना रखा है. कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में केंद्र के साथ संवाद और संतुलन ही जरूरी है. उमर की छवि भी एक सॉफ्ट-नेशनलिस्ट नेता की है. यही वजह है कि घाटी के साथ ही जम्मू रीजन में उनका प्रभाव है.
टकराव की नीति से उमर की दूरी
अनुच्छेद-370 हटने के बाद कश्मीर की राजनीति में बड़ा बदलाव आया है. उमर अब्दुल्ला ने भले ही अनुच्छेद-370 का विरोध किया हो लेकिन उन्होंने पूरी तरह टकराव की नीति नहीं अपनाई. कई बार उमर ने कहा है कि वो कानूनी और लोकतांत्रिक तरीके से बदलाव की कोशिश करेंगे. फिलहाल वो जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य के दर्जे की बहाली की बात करते हैं और विश्वास भी जताते हैं कि मोदी सरकार इसे लौटाएगी.
अतिवादी बयानों से बचते हैं उमर
उमर अब्दुल्ला अतिवादी बयानों से बचते हैं. वो क्षेत्रीय भावनाओं के साथ ही राष्ट्रीय हितों को भी साधते हैं. वो महबूबा की तरह अतिवादी बातों से परहेज करते दिखते हैं. पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब केंद्र सरकार ने सिंधु जल संधि स्थगित की तो उमर खुलकर इसके पक्ष में दिखे. जबकि पानी को लेकर उमर और महबूबा में सोशल मीडिया पर जुबानी जंग दिखी.
विश्वसनीय क्षेत्रीय नेता की छवि
यही वहज है कि केंद्र को भी उमर में एक विश्वसनीय क्षेत्रीय नेता नजर आता है. ऐसा नेता जिससे संवाद किया जा सकता है. बात करें आज की तो मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पीएम मोदी की जमकर तारीफ की. उमर ने बड़े सधे अंदाज में राज्य के दर्जे को बहाल करने की अपनी बात भी रखी. उन्होंने कहा, जब आप पहली बार प्रधानमंत्री बने और यहां आए. ऊपर वाले की कृपा से आपने कटरा रेलवे स्टेशन का उद्घाटन किया.
उमर ने क्या कहा?
उन्होंने कहा, इसके बाद आप लगातार दो बार चुनाव जीते. जब आप आए थे तो पीएमओ में आपके राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह भी मौजूद थे. उपराज्यपाल मनोज सिन्हा उस समय रेल राज्य मंत्री थे, वो भी मौजूद थे. मैं तब राज्य का मुख्यमंत्री था. मगर अब मेरा थोड़ा डिमोशन हुआ है. मैं अब केंद्र शासित प्रदेश का मुख्यमंत्री हूं. मुझे यकीन है कि इसे ठीक होने में बहुत समय नहीं लगेगा. आपकी मदद से फिर से राज्य का दर्जा मिल जाएगा.
पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर तमाचा
इसके साथ ही उमर मंच से कहते हैं, कश्मीर को रेल से जोड़ने का सपना अंग्रेजों ने भी देखा था. मगर अंग्रेज सफल नहीं हुए. जो काम अंग्रेज ना कर पाए, वो आपके हाथों हुआ और कश्मीर देश के बाकी हिस्सों से जुड़ गया. उनकी इस बात पर पीएम मोदी ने ताली भी बचाई. अब बात करते हैं रेल मार्ग से कश्मीर के पूरे देश से जुड़ने पर पाकिस्तान को लगने वाले तमाचे की.
पाकिस्तान अपनी बदहाली से उतना परेशान नहीं रहता जितना कश्मीर और यहां के आम बाशिंदों की खुशहाली से. इसीलिए वो दुनिया के तमाम मुल्कों से उधारी लेकर भी कश्मीर की फिजा में बारूद घोलने की साजिश रचता रहता है. फिलहाल, चिनाब ब्रिज बनने और कश्मीर की पटरियों पर दौड़ने वाली वंदे भारत पाकिस्तान के मंसूबों पर तमाचे से कम नहीं है.